श्री गणेशाये नमः गणेश चतुर्थी क्या है नमस्कार पाठक गणों पूर्वांचल सामाचार में आप सभी का स्वागत है। भगवा...
श्री गणेशाये नमः
गणेश चतुर्थी क्या है |
भगवान गणेश बुद्वि के देवता के रूप में पूजे जाते है, ऐसी मान्यता है कि किसी भी शुभ कार्यों एंव पूजा में सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा होनी चाहिए अन्यथा वह कार्य या पूजा पूर्ण नही माना जाता है।
आइये हम सभी भगवान गणेश व्रत ओर पूजा, मंत्र के बारे में स्पष्ट जानकारी प्राप्त करें।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश चतुर्थी व्रत रखा जाता है।
इस गणेश चतुर्थी को भादो पक्ष का विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।
गणेश चतुर्थी महाराष्ट्र समेत देश के अन्य हिस्सों में मनाते हैं इस दिन गणपति की मूर्ति स्थापना की जाती है और विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं गणपती बप्पा को नौ दिनों तक घर पर या पंडालों में रखा जाता है और गणेश चतुर्थी के दिन विसर्जित कर दिया जाता है हालांकि लोग अपनी सार नौ दिन से कम दिनों के लिए भी गणपति स्थापना करते हैं इस गणेश चतुर्थी को भाद्रपद की विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है गणेश चतुर्थी की तिथि स्थापना और मुहूर्त पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ, चतुर्थी तिथि 18 सितंबर को दोपहर 12:39 पर आरम्भ हो रहा है। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर गणेश चतुर्थी व्रत 19 सितंबर को रखा जाएगा। और भगवान गणेश जी का स्थापना भी 19 सितंबर को किया जायेगा।
गणेश पूजा का शुभ मुहूर्त प्रात:काल 10:50 से 12:52 के दौरान होगा।
गणपति विसर्जन 28 सितंबर दिन गुरूवार को गणपति स्थापना की जाएगी !
Ganesh Chaturthi |
भगवान गणेश जी का शक्तिशाली मंत्र
श्री गणेशाये नमः , गणपतये नमः, वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि सम्प्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्यषु सर्वदा
भगवान गणेश का ध्यान करके हुए आप लोग इन मंत्रो को कम से कम 11 बार जरूर जपे इससे आपके जीवन में आये सारे कष्ट दूर होगा और मंगल ही मंगल होगा
गणपति के पूजा में माता गौरी की पूजा और साथ ही महादेव का भी पूजा अवश्य करें।
गणेश चतुर्थी क्या है इसे क्यों मनाया जाता है?
गणेश चतुर्थी क्या है और इसे श्रद्धाभाव के साथ क्यों मनाया जाता है? चलिए इसे समझने के लिए इससे जुड़ी कथा को जानते हैं इस कथा का वर्णन शिवपुराण में रुद्रसंहिता चतुर्थं कुमार खंड के अध्याय तेरह से उन्नीस में मिलता है
श्वेत कल्प में जब भगवान शंकर जी की अमोग त्रिशूल से पार्वतीनंदन दंडपाणी का मस्तक कट गया था तब पुत्रवत सलाह जगतजननी पार्वती जी अत्यंत दुखी हुई उन्होंने बहुत सी शक्तियां को उत्पन्न किया और उन्हें प्रलय मचाने की आज्ञा दे दी उन पर हम तेजस्विनी शक्ति, उन्हें सर्वत्र संहार करना प्रारंभ कर दिया प्रलय का दृश्य उपस्थित हो गया देवगढ़ हाहाकार करने लगी तब समस्त देवता मॉ जगदम्बा को प्रसन्न करने के लिए देवताओं ने उत्तर दिशा से हाथी का सिर लाकर शिवा पुत्र की धड़ से जोड़ दिया गया महेश्वर के तेज से पार्वती का प्रिय पुत्र जीवित हो गया अपने पुत्र गजमुख को जीवित देखकर माता पार्वती जी अत्यंत प्रसन्न हुई और अपने पुत्र का सत्कार करके उसका मुख चूमा और प्रेमपूर्वक उसे वरदान देते हुए कहा क्योंकि इस समय तेरे मुख पर सिंदूर दिख रहा है इसलिए मनुष्य को सदा सिंदूर से तेरी पूजा करनी चाहिए जो मनुष्य पुष्प चंदन, सुंदर गंध, नैवेद्य, रमणी, आरती, ताम्बूल और दान से तथा परिक्रमा करके तेरी पूजा करे गा उसके सभी प्रकार के विघ्न नष्ट हो जाएंगे उस समय दयामय पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और शिव आदि सभी देवताओं ने वही गणेश जी को प्रथम देव घोषित कर दिया उसी समय अत्यंत प्रसन्न महादेव ने अपने वीर पुत्र गजानन को अनेक वर प्रदान करते हुए कहा, विघ्ननाश के कार्य में तेरा नाम सर्वश्रेष्ठ होगा तो सबका पूज्य हैं, अतः अब मेरे संपूर्ण गणों का अध्यक्ष हो जा तदनंतर परम प्रसन्न आशुतोष ने गणपति को पुन वर प्रदान करते हुए कहा गणेश्वर तुम भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को चन्द्रमा का शुभोदय होने पर उत्पन्न हुआ है, जिस समय गिरिजा के सुंदर चित्र से तेरा रूप प्रकट हुआ उस समय रात्रि का प्रथम प्रहर बीत रहा था इसलिए उसी दिन से आरंभ करके उसी तिथि में प्रसन्नता के साथ प्रतिमा से तेरा उत्तम व्रत करना चाहिए वहाँ व्रत परम शोधन तथा संपूर्ण सिद्धियों का प्रदाता होगा दोस्तों फिर व्रत की विधि बदलते हुए गणेश चतुर्थी के दिन अत्यंत श्रद्धा भक्ति पूर्वक गजमुख को प्रसन्न करने के लिए किए गए व्रत, उपवास एवं पूजन के माहात्म्य का गान किया और कहा, जो लोग नाना प्रकार के उपचारों से भक्तिपूर्वक तेरी पूजा करेंगे, उनके विघ्नों का सदा के लिए नाश हो जाएगा और उनकी कार्यसिद्धि होती रहेंगी सभी वर्ण के लोगों को विशेषकर स्त्रियों को यह पूजा अवश्य करनी चाहिए
पूजा विधि
मनुष्य जिस भी वस्तु की कामना करता है उसे निश्चय ही वस्तु प्राप्त हो जाती है अतः जिससे किसी वस्तु की अभिलाषा हो, उसे अवश्य तेरी सेवा करनी चाहिए भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी को बहुला सहित गणेश की गंध, पुष्प माला और दूर्वा आदि के द्वारा यत्न पूर्वक पूजा कर परिक्रमा करनी चाहिए सामर्थ्य के अनुसार दान करें दान करने की स्थिती ना हो तो बहुला गाय को प्रणाम कर उसका विसर्जन कर दे इस प्रकार पांच दस या सोलह वर्षों तक इस व्रत का पालन करके उद्यापन करें उस समय दूध देनेवाली सवस्थ गाय का दान करना चाहिए इस व्रत को करने वाले स्त्री पुरुषों को सुखद भोगों की उपलब्धि होती है देवता उनका सम्मान करते हैं और अंत में गोलोक धाम की प्राप्ति करते हैं वैसे तो गणेश चतुर्थी पूरे भारत में मनाया जाता है किंतु महाराष्ट्र का गणेशोत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है महाराष्ट्र में इन्हें मंगलमूर्ति के नाम से पूजा जाता है महाराष्ट्र में पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया कहते हैं कि पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थापना शिवाजी महाराज की माँ जीजाबाई ने की थी, परंतु सार्वजनिक गणेश पूजन का आयोजन 1893 एटी नाइनटीन थ्री, में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा किया गया था।
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