प्रिय पाठकों आज हम लोग जानेंगे कि माता मेलडी कौन हैं । और माता मेलडी की सवारी क्या है ? माता मेलडी की उत्पत्ति कैसे हुई? माता मेलडी को सिद्ध...
प्रिय पाठकों आज हम लोग जानेंगे कि माता मेलडी कौन हैं। और माता मेलडी की सवारी क्या है ? माता मेलडी की उत्पत्ति कैसे हुई? माता मेलडी को सिद्ध कैसे करें,मेलडी माता का इतिहास के बारे विस्तार से जानेंगे।
Meldi Maa Photo |
मॉं मेलडी कौन है। (Meldi Maa)
माता मेलडी बहुत ही शक्तिशाली और एक बहुत बड़ी मसानी है। मॉं मेलडी से अनेकों प्रकार के कार्य किये जा सकते है। यह तामसी में भी चलती है,सात्विक में भी चलती है। और राजसी में यह शक्ति चलती है। कुल 360 प्रकार की मसानी है। उन्ही मसानियो में से एक मेलडी माता है। जैसे मां दुर्गा की सवारी शेर है। और माता शीतला की सवारी गधा है। वैसे मां मेलडी की सवारी बकरे की है। इनका गुजरात में सिद्ध पीठ मंदिर भी है। यह मेलडी माता का गुजरात के साथ ही उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश , हरियाणा एवं अन्य राज्यों में भी इनका मंदिर हैं। तंत्र के क्षेत्र में यह देवी बहुत ही प्रभावशाली मानी जाती हैं। यह देवी बहुत ही जल्द प्रसन्न होती है। और बहुत ही शक्तिशाली और तेज काम करती हैं। इनको जागृत कर लेने से इनके माध्यम से आप किसी का भी तन्त्र काट सकते हैं। यह देवी की पूजा सात्विक भी होता है। और तामसी दोनो प्रकार से माता मेलडी की पूजा होती हैं।
माता मेलडी की उत्पत्ति कैसे हुई। (Masani Meldi)
सत युग के समाप्ति के दौरान एक राक्षस हुआ जिसका नाम अमरूवा था। उसने सभी देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया। कब जाकर सभी देवताओं ने माता जगत जननी अम्बा जी के शरण में आए। फिर मां दुर्गा जी समेत नव दुर्गा ने अमरुवा के साथ युद्ध आरम्भ किया। यह युद्ध 5000 हजार वर्ष तक चला उसके बाद मां दुर्गा देवी ने उस दैत्य के पूरी सेना को समाप्त कर दिया। और जब अमरूवा ने देखा कि वह अब मारा जायेगा। कब उसने भागा भागते भागते उसे एक मृत गाय का कंकाल दिखा फिर क्या था। अमरूवा दैत्य ने उस मृत गाय के अशुद्ध हड्डी में प्रवेश कर छुप गया। वह जानता था कि यह देविया इस स्थान पर नही आ पाएंगी। फिर नव दुर्गा और दस महा विद्या उन्होंने सोचा की अब इस असुर को कैसे मारा जाय।
कब जाकर मां दुर्गा और नव दुर्गा ने अपने दोनों हाथों को आपस में रगड़ा उससे जो मैल निकला उससे एक 5 वर्ष की दिव्य कन्या उत्पन्न हुई। जिनके हाथों में खंजर था।
माता मेलडी की उत्पत्ति मां दुर्गा की मैल से हुई।
कब मां दुर्गा देवी ने उस कन्या से कहा की आप उस मृत गाय के कंकाल में प्रवेश करे और उस दैत्य का संहार करे। आज्ञा पाकर उस कन्या ने गाय के कंकाल में प्रवेश किया तब मां मेलडी को देख कर दैत्य भागने लगा और उस भयंकर दैत्य ने भाग कर सायला सरोवर में किड़ा बन कर जा छुपा फिर माता मेलडी वही पर उस दैत्य का संहार किया।
उसके बाद वह कन्या वापस आयी। और माता पार्वती से पूछा की हे मां मैं कौन हूं, मेरा नाम क्या है,मेरा धाम क्या है? इस पर माता पार्वती जी ने उन्हें देवी चामुण्डा जी के पास भेजा। तब मां चामुण्डा जी ने उस कन्या को नाम,धाम बताने से पहले उनकी परीक्षा लेने की सोची और कहा की पहले आप कामरूप कामाख्या जाओ। उस कन्या ने कामरूप कामख्या में जाकर वहा का तंत्र सुरक्षा को तोड़ा फिर वहा का जो पहरेदार नूरीया मसान था। माता ने उन्हें बांधा दिया। उसके बाद वहा जितनी भी भूत प्रेत, तांत्रिक और बूरी शक्तियों को माता ने बोतल में भर दिया। और उन्हीं में से कुछ को बकरा बना कर माता जी ने उस पर सवार होकर माता चामुण्डा जी के पास आयी। यह देख कर माता चामुण्डा प्रसन्न हुई।
तंत्र क्षेत्र में माता मेलडी बहुत ही शक्तिशाली है। इनके भक्तों पर मॉं की सवारी भी आती है।
मां का नाम मेलडी कैसे पड़ा?
मेलडी का अर्थ है। जो मैल से उत्पन्न हुई। और दूसरा जिसने मलिन — मैली शक्तियों पर विजय प्राप्त किया वह मेलडी है। देवी मताओं के हाथ के मैल से उत्पन्न हुई। इस कारण माता चंडी जी ने इनका नाम मेलडी रखा। माता मेलडी के नाम से विख्यात हैं।
मसानी मेलडी माता का मंत्र
ॐ ह्रीं मेलडी देव्यै नमः
मॉं मेलडी का पूजा कैसे करे?
मॉं मेलडी का सबसे आसान तरीका बता जा रहा हू जो कि सभी लोग कर सकते है।
सर्वप्रथम मॉं मेलडी जी का एक तस्वीर बकरे पर सवार हुई। लेकर आये और माता जी को एक साफ आसन पर मॉं का तस्वीर रखें। एक तील के तेल का दिपक जालाये। अथवा चमेली का तेल का भी दिपक जला सकते है। फिर माता जी को चमेली के फूल का माला और फूल अर्पित करें साथ ही माता जी को गूगल का धूप अवश्य दे यह मॉं को अति प्रिय है। गुलाब और मोगरे का भी फूल चढ़ाये। माता मेलडी का मंत्र का कम से कम 21 या फिर आप 108 बार मॉं के मंत्रो का जाप करे। मॉं का सच्चे मन से ध्यान करे क्षमा मांगे और मॉं का पूरे दिन जय मॉं मेलडी का मन ही मन जप करे। मॉं को भोग में मिठे फल, खीर बताशा का भोग लगा सकते है। मॉं मेलडी के नाम से एक नारियल भी चढ़ा सकते है। मॉं के भोग के साथ में जल भी रखें। उसके बाद मॉं के मंत्रों के द्वारा हवन करे। और मॉं से गलती अपराध का क्षमा मांगे। मॉं अति दयालु है। वह जल्द प्रसन्न होती है। माता मेलडी के उपासकों को नशा एंव बूरी चीजों से दूरी बना कर रखना चाहिए।
मेलडी माता को सिद्व कैसे करे?
मेलडी माता बहुत ही शक्तिशाली और बहुत ही ममता मय है,दयालू है। जो लोग माता मेलडी जी का का पूजा करते है। तो मेलडी मॉं उन सभी का हर प्रकार से मॉं रक्षा करती है।
यह सिद्व होने पर भाव भी देती है कि क्या होने वाला है। 14 अक्टूबर को ग्रहण है, इस सूतक काल में मॉं का मंत्र का जाप करना है। और गूगल का धूप देना है। और जो नियम बताया गया। पूरा नवरात्रि मॉं का अच्छे से पूजा करनी है। गुरू के सानिध्य में ही करना है।
मेलडी मॉं का चालीसा
नमो नमो जगदम्ब जय, नमो अजवाहिनी मात।
तुम ही आदि अरु अंत हो , तुमहि दिवस अरु रात।
कालिसुत सदा रटत है, नाम तिहारो साँझ और प्रभात,
कृपा तेरी बस मिलती रहे, और रहे सदा शीश पर हाथ।
जय जय मेलडी दयानिधि अम्बा - हरहु सकल कष्ट अविलम्बा।
जो नर - नारी तुमको ध्यावैं - बिन श्रम परम पद पावैं।।
जो जन चल तुम्हरे ढिंग आवै - फिर उसको नहीं काल सतावै।
तुम अम्बे आदिशक्ति हो माता - तव महिमा सकल जग विख्याता।।
पल मंह पापी असुर अमरुवा संहारे - गूंज उठे चहुँदिश जयकारे।
गुजरात प्रदेश तुमहि अति भावै - नर-नारी सब तुमहि मिल ध्यावैं।।
शक्ति मैल से तुम माँ उपजी - तब शक्ति समूह ने बेबसी तजी।
असुर घुस्यो तब गौ पिंजर माही - सुर-नर-मुनि हित दारुण दाही।।
सकल सुर तब मनहि विचारैं - अस को त्रिभुवन जो यह असुर संहारै।
सिगरी शक्ति बेबस हस्त घिसैं - तेज पुंज मैल रूप मह धरनि गिरैं।।
यह लखि सब चकित भये - उमा भवानी का सब मुख लखैं।
उमा मातु बनावें पिंडी सुन्दर - कोउ नहीं जस त्रिभुवन अंदर।।
फिर सबके देखत एक कन्या बनी - रूप-बुद्धि और बल की धनी।
घुसी तब तुम पिंजर के अंदर - संहारेउ मातु तुम दुर्धर असुर।।
सुर-नर-मुनि जन सब हरसाये - कालीपुत्र सदा तुम्हरे गुण गावे।
फिर तुम माता कमरू कामाख्या सिधारी - भक्त जनों की हितकारी।।
वहां निम्न विद्या का था राज - कलुषित तांत्रिक नहीं आते थे बाज।
जनता मध्य मची थी त्राहि-त्राहि - कौन सुनै अब केहि दर्द सुनाही।।
चामुण्डा तब हुकुम सुनायो - जाओ पुत्री कामाख्या के दर्द मिटाओ।
चली मातु तुम युद्धरता रुपिणी - सर्व भय सकल त्रास विदारिणी।।
कामरूप के सब पहरे तुमने तोड़े - काली विद्ययाओं के पर तोड़े।
नूरिया मसान तहाँ अति बलशाली - करता था निम्न तंत्र की रखवाली।।
पल मंह नूरिया मसान हराया - कामरूप को काले जादू से मुक्त कराया।
मन्त्र-तंत्र अरु मैली विद्या की धरती - काँप उठी तुम्हरे तेज से वह मिट्टी।।
मैली विद्याओं का घोल बनाया - अरु निज कर बोतल माहि समाया।
भूत -प्रेत-आत्मा-जिन्नात - लखि दुर्दशा आम जनन की बहुत ठठात।।
मांत्रिक-तांत्रिक और अघोरी - सब मिल करते थे जन-धन चोरी।
तब तुम अति कुपित हुयी थी माता - भवभय हरनी भाग्य विधाता।।
पकड़ सबहि फिर बकरा बनाया - वह बकरा निज वाहन रूप सजाया।
सबहि जीत चामुण्डा ढिंग आयीं - दशों दिशाएं जय जयकार से हर्षाईं।।
चामुण्डा तब बोलीं बहुत हरषाई - और तुम माता मेलडी कहलायीं।
तुम कलयुग कि स्वयं सिद्ध हो माता - जाय बसी अविलम्ब गुजराता।।
जो नर-नारी तुम्हरे गुण गाते - सकल पदारथ इसी लोक में पाते।
तुम्हरी महिमा आदि-अनादि है अम्बा - तुम दुःख हरनी जगदम्बा।।
मैं निशदिन तुम्हरी महिमा गाउँ - तब चरणन में दाती शरण मैं पाऊं।
माता मोहे चार प्रबल शत्रु हैं घेरे - डरपत यह मन शरण पड़ा है तेरे।।
बकरा वाहिनी मेलडी कहलाती - त्रिभुवन स्वामिनी तुम जगद्धात्री।
मोहि पर कृपा करहु जगजननी - तव महिमा मुख जात ना बरनी।।
आओ माता जीवन-मरण से मोहि उबारो - शरण पड़े की विपदा टारो।
जो नित पढ़ै यह मेलडी चालीसा - बिनश्रम होहि सिद्धि साखी गौरीशा।।
तुम जननी हरनी तुमहि , काली सुत को चरणन की आस,
तुमसे ही भव पार है , जपत तुम्ही निश-वासर और प्रभात।
तुम्हीं सबसे श्रेष्ठ हो , तुम ही ही आगम-निगम के पार ,
मम गति तुम्हरे हाथ है , हे माते मेलडी कर दो मम उद्धार।।
मॉं मेलडी का दिन कौन सा है?
मॉं मेलडी का दिन मंगलवार है।