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मुझे एक बहादुर लड़की की कहानी सुनाओ : Mujhe Bahadur Ladki Ki Kahani Sunao

मुझे एक बहादुर लड़की की कहानी सुनाओ मुझे एक बहादुर लड़की की कहानी सुनाओ यदि आप से कोई कहे की मुझे एक बहादुर लड़की की कहानी सुनाओ  को आप नीर...

मुझे एक बहादुर लड़की की कहानी सुनाओ

यदि आप से कोई कहे की मुझे एक बहादुर लड़की की कहानी सुनाओ  को आप नीरजा भनोट की कहानी अवश्य सुनाना,एक रियल कहानी है। यह कहानी भारत की एक बहादूर लड़की की कहानी है। 


5 दिसंबर, 1986 को केवल 25 वर्ष की उम्र में कराची एअरपोर्ट पर हाइजैकर्स के बुलेट का शिकार हुई। चंडीगढ़ में स्थित रमा भनोट और पत्रकार हरीश भनोट को बेटे अखिल और अनीश के बाद एक बेटी की चाहत थी। ईश्वर ने उनकी प्रार्थना सुनी और 7 दिसंबर 1963 को उनकी लाडली बेटी नीरजा भनोट का जन्म हुआ।


माता पिता नीरजा को प्यार से लाडो बुलाते थे। नीरजा ने चंडीगढ़ के सीक्रेट हार्ट स्कूल में पांचवीं तक की पढ़ाई की। 1974 में उनका परिवार मुंबई शिफ्ट हो गया। वहाँ उन्होंने मुंबई कॉटेज हाई स्कूल से आगे की पढ़ाई करके सेंट जेवियर्स कॉलेज से ग्रैजुएशन किया।

वह बचपन से ही काफी संवेदनशील, खुशमिजाज और लोगों की मदद करने वाली थी। ग्रैजुएशन के तुरंत बाद उनकी शादी हो गई और वह अपने पति के साथ दुबई रहने चली गई।


लेकिन तकदीर को कुछ और ही मंजूर था। दो महीने बाद ही पति उत्पीड़न, पति द्वारा दहेज उत्पीड़न के वजह से वह दुबई से मुंबई आ गए। आत्मविश्वास से भरी खूबसूरत मिर्जा ने अपना धैर्य नहीं खोया और मुंबई आकर मोडलिंग करने लगीं। 


बिनाका टूथपेस्ट, डैंजरस, गोदरेज, बेस्ट्रो, डिटर्जेंट, पेपोरेक्स ,विको टरमरिक क्रीम जैसे टेलीविज़न एवं प्रिंट, विज्ञापन में वह नजर आए। उसके बाद उन्होंने यूनाइटेड स्टेट की मुख्य एवं सबसे बड़ी इंटरनेशनल एयर कैरिअर पर अमेरिका वर्ड एयरबेस में फ्लाइट नौकरी के लिए अप्लाइ किया। इस नौकरी के लिए करीब 10,000 आवेदन पत्र आए थे।


पर नीरजा आराम से टॉप 80 में चुन ली गईं। फ्लाइट अटेंडेंट की ट्रेनिंग के लिए उन्हें मायामी भेजा गया। उनके साथ उत्सव से प्रभावित होकर उन्हें सीनियर फ्लाइट पर्सन नियुक्त कर लिया गया। जो 22 साल की उम्र में उनकी कैरियर की बड़ी उपलब्धि थी।


हाईजैक की घटना 

उनके जीवन में एक ऐसा घटना हुआ जो उनके सम्पूर्ण जीवन को ही नष्ट कर दिया। 

5 दिसंबर 1986 को नीरजा भनोट पैन अमेरिकन वर्ल्ड एयरवेज़ फ्लाइट 73 में ड्यूटी पर थी। यह फ्लाइट 361 यात्रियों और 19 क्रू सदस्यों को लेकर मुंबई से यूएस के लिए उड़ान भर रही थी। मुंबई से यह रवाना होकर पाकिस्तान के कराची में जिन्ना इंटरनेशनल हवाई अड्डे में उतरी। 


जब जहाज स्टार में पर टेकऑफ के लिए खड़ी थी, तब अचानक चार हथियारबंद आतंकवादियों ने जहाज के अंदर घुसकर जहाज़ को हाईजैक कर लिया। यह हाइजैकर्स, लीबिया से संबंधित  आतंकवादी संगठन के थे। जो प्लान को इस्राइल ले जाकर क्रैश करना चाहते थे। निर्जा ने तुरंत कॉकपिट में लोगों को इस बात की सूचना दी। 

मुझे एक बहादुर लड़की की कहानी सुनाओ : Mujhe Bahadur Ladki Ki Kahani Sunao , nirja bhanot image
Neerja Bhanot


कॉकपिट से पायलट को, को पायलट को और फ्लाइट इंजीनियर बाहर निकाले गए, ताकि उनसे हाइजैक कर जबरदस्ती उड़ाना भरवा सके। सीनियर कर्मचारी होने के वजह से नीरजा पर सारा उत्तरदायित्व था। जहाज में अलग अलग देशों के यात्री मौजूद थे, पर मुख्य रूप से अमेरिकी यात्री हाइजैकर्स के निशाने पर थे। 


नीरजा ने अपने सूझबूझ से अमेरिकन यात्रियों के पासपोर्ट को छुपा दिया ताकि आतंकवादी उनकी पहचान ना कर सके। उन्होंने अपने चेहरे पर मुस्कान को कायम रखा और एक बार भी यात्रियों को सर पर मंडरा रहे खतरे या भय का अहसास होने नहीं दिया। 


यह डरावना खेल 17 घंटे तक चालू रहा और 17 घंटे बाद आतंकवादियों ने धमाका करने के लिए आग जलाया। इतने में बिना समय गंवाए नीरजा ने इमर्जेन्सी दरवाजे को खोलकर फिसलकर सब को निकालने के लिए। सूट भी खोल दिया और यात्रियों को जल्दी से निकालने का निर्देश दिया। 


मित्रों वह चाहती तो दरवाज़ा खोलकर पहले खुद भाग सकती थी। पर उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होनें अपने कर्तव्य का बहुत ही इमानदारी से निर्वहन किया। इतने में आतंकवादियों ने फायरिंग करना शुरू कर दिया। 


नीरजा तीन बच्चों को गोलियो से बचाने के लिए सुरक्षा कवच बनकर खड़ी हो गई और गोलियों ने उनके शरीर को छलनी कर दिया। 41 अमेरिकी यात्रियों में दो की गोलियों से मृत्यु हो गई और बाकी सभी यात्री बचा लिए गए। निजा ने यात्री को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहूति देगी।


2 दिन बाद अपने जन्मदिन पर अपने माता पिता से मिलने वाली थी पर अफसोस उनका मृत शरीर उनके माता पिता के पास पहुंचा। इस घटना के बाद नीरजा भनोट को द हिरोइन ऑफ हाइजैक के रूप में पहचान मिला।


मरणोपरांत उनके त्याग बहादुरी के लिए कई राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से उन्हें सम्मानित किया गया। 


भारत की सबसे प्रतिष्ठित शौर्य पुरस्कार अशोक चक्र को प्राप्त करने वालों में वह सबसे कम उम्र की है। भारत की मिस्ट्री ऑफ सिविल एविएशन अवार्ड यूनाइटेड स्टेट फॉर क्राइम अवॉर्ड —यू एस से की फ्लाइट सेफ्टी फाउंडेशन हीरोज़ अवॉर्ड, यूनाइटेड स्टेट डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस द्वारा स्पेशल अवॉर्ड और पाकिस्तान द्वारा तमगा ए इंसानियत अवॉर्ड उनके मरणोपरांत उन्हें दिए गए। 


नीरजा ने जिन बच्चों को बचाया था। उनमें से एक आज मुख्य एयरलाइन का कैप्टन है। और वह नीरजा को अपनी प्रेरणा का स्रोत मानते हैं। नीरजा के पति ने उनकी औकात पर ऊँगली उठाकर जलील किया था।


लेकिन नीरजा ने पूरी दुनिया के सामने त्याग और साहस का परिचय देकर यह दिखा दिया कि वो असल में क्या है? उनकी कुर्बानी कभी भूली नहीं जा सकती और हर साहसी फ्लाइट क्रू के सदस्य के रूप में वो सदा हम सब के बीच में अमर रहेंगी।

भारत की साहसी बेटी ''नीरजा भनोट'' को हम सब नमन करते है।

 


Second Story

11 वर्षीया बहादुर लड़की "अनुष्का पाठक" की सच्ची कहानी

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यह दूसरी एक बहादुर लड़की अनुष्का पाठक की स्टोरी है, जो आपके साथ शेयर करने जा रहे हैं। यह भी सच्ची घटना है। 

11 वर्ष की उम्र में जब उसने अपने घर से 800 किलोमीटर दूर एक बोर्डिंग स्कूल में दाखिला लिया तो वहाँ उसे व्यवस्थित होने में दो से ढ़ाई साल लग गए। उसने सोचा या उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा समझौता होगा। परंतु नियति कुछ और इम्तहान लिए तैयार था। 5 साल पहले एक ऐक्सिडेंट में उसे अपना एक हाथ खोना पड़ा। 

पर अबकी बार उसे समझौता मंजूर नहीं था। और उसने एक नए तरीके से अपने दम पर खड़ा होने का संकल्प लिया। जी हाँ, 19 वर्ष की उस बहादुर लड़की का नाम है। अनुष्का पाठक जिन्होंने लोग क्या कहेंगे की परवाह किए बगैर अपने तरीके से जीवन में श्रेष्ठतम हासिल किया।


2012 में उसके स्कूल के सारे बच्चे ट्रिप पर जा रहे थे। बस ड्राइवर ने शराब पी रखी थी और बस को सीधे उसने सड़क के डिवाइडर पर चढ़ा दिया। कुछ ही पलों में बस दाहिनी तरफ गिर गई और अनुष्का का चेहरा ग्लास की खिड़की पर पूरी तरह से टकरा गया। सभी लोग भागने लगे परंतु इसका उठ तक नहीं पाए। अनुष्का का कहना है उसकी दोस्त ने उसके बाएं बाजू को कस कर पकड़ लिया और पूरी ताकत से खींचने लगी। वह खड़ी हुई, उसने देखा। 

उसका दूसरा बाजू  जमीन पर पड़ा है और वह खून और मांस के टुकड़े फैले पड़े थे। अनुष्का को अस्पताल पहुंचाया गया। डॉक्टर अस्पष्ट शब्दों में कुछ कह रहे थे। कि 15 मिनट से अनुष्का का बीपी और पल्स नहीं मिल रहे। अंतत: उसका जीवन तो बच गया पर उसने अपने बाजू खो दी हमेशा के लिए। देह से अधूरी हो गईं। 

अनुष्का ने 1 दिन बाद अपनी आंखें खोलीं और उसने डॉक्टर को कहते हुए सुना की ऊपर की कोहनी को अलग कर दिया गया है। उसके चेहरे पर काफी चोटें थीं। वह बताती हैं कि वो भाग्यशाली हैं जो आर्थिक स्थिति से मजबूत घर में पैदा हुई। 

तभी उन्हें अच्छे से अच्छा इलाज मिल पाया। मुंबई के उस हॉस्पिटल में जाने के बाद हर दूसरे दिन सर्जरी होती थी। क्योंकि काफी कुछ क्षतिग्रस्त हो गया था। हर पिता की तरह अनुष्का के पिता ने भी स्कूल पर मुकदमा चलाना चाहा, उनकी लापरवाही के लिए जिसके कारण उसकी बेटी को इतना नुकसान हुआ।

परंतु अनुष्का जानती थी कि फिर वह वापस स्कूल नहीं जा पाएगी। इसलिए उन्होंने अपने पिता को स्कूल पर मुकदमा चलाने के लिए रोका। और उनसे उबरने का अपना सारा ध्यान केंद्रित करने लगी। बाएँ हाथ से लिखाई  सीखने के लिए उसे बहुत मेहनत करनी पड़ी।

 उसके लिए बेहद निराशा से भरा होता था। परन्तु अनुष्का दृढ़ संकल्पित थी। कि उसे वापस स्कूल जाना है। हॉस्पिटल से घर जाने के बाद वह हर रोज़ एक पेज लिखने लगे और 10 दिनों के अंदर वह बाएं हाथ से अच्छी तरह से लिखने लगी और अपना छोटा मोटा काम भी खुद करने लगी। 

यहाँ तक की स्कूल ड्रेस पहनना भी यह सब सीखने में पूरी गर्मी या निकल गई।अनुष्का अगस्त 2012 में वापस स्कूल गई।इस बदलाव में उसके दोस्तों ने बड़ी मदद की और उन्हें भरोसा हुआ। कि वह अब सब कुछ कर लेगी। 

उसने अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया और आने वाले सालों में उसने अपना श्रेष्ठ दंग दिया।उसने बहुत सारे वाद विवाद प्रतियोगिता जीते, उसकी कविता छपी और SAT की परीक्षा में बहुत अच्छा स्कोर किया। स्कूल के अंत में उसे प्रतिष्ठित सम्मान स्पिरिट ऑफ मायो से नवाजा गया।

मध्यप्रदेश के एक छोटे से शहर सतना से होने की वजह से हर कोई उसे पहचानता था। यह उसके लिए थोड़ा मुश्किल था। लोग उसके लिए सहानुभूति की बातें करते। की कैसे उसकी शादी होगी, कैसा दूल्हा मिलेगा? 


इन सब बातों से अनुष्का और उसके माता पिता परेशान हो जाते थे। परन्तु जब अनुष्का एटलांटा जाकर अपने रंग बिरंगे सपनों के साथ वापस आई तब उनकी सारी चिंताएं दूर हो चुकी थी।


अनुष्का का कहना है, मेरे हाई स्कूल के खत्म होने पर मैंने अपने आप से एक वादा किया है। कि मैं उस जगह फिर से जाउंगी जहाँ मेरा ऐक्सिडेंट हुआ था। परन्तु मैं वहाँ तब तक नहीं जाना चाहूंगी जब तक मैं जीवन में कुछ बन नहीं जाती। वापस में जब उस एक्सीडेंट वाली जगह पर जाऊँगी तब मैं वहाँ खड़ी होंगी। 


अपने स्वाभिमान और कुछ ना होने के एहसास के साथ एकदम मुकम्मल, मैं उन मुसीबतों और बाधाओं पर हसूंगी जिन्होंने मुझे पूरी तरह से तोड़ देने की साजिश रची थी। अनुष्का कहती हैं मैं बाधाओं को लांघकर आगे बढ़ती जाउंगी, बेचारगी के साथ नहीं, बिल्कुल जुझारू होकर आंखो में चमक लिए। 




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