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Artificial Rain: स्वदेशी तकनीकी से होगी कृत्रिम बारिश, IIT कानपुर की टीम जल्द करेगी ट्रायल - पूर्वांचल समाचार

Lucknow: बरसात के मौसम में प्राकृतिक रूप से वर्षा कब होती है? जब सूरज की गर्मी बहुत ज्यादा हो जाती है। और समुद्र और नदियों का पानी सूरज की ...

Lucknow: बरसात के मौसम में प्राकृतिक रूप से वर्षा कब होती है? जब सूरज की गर्मी बहुत ज्यादा हो जाती है। और समुद्र और नदियों का पानी सूरज की गर्मी से भाप या गर्म हवा बनकर ऊपर उठ जाता है, लेकिन जरा सोच कि कभी बारिश ही ना हो या फिर बारिश हमारे लिए पर्याप्त ही ना हो उसका समाधान क्या है। कृत्रिम बारिश यानी कि आर्टिफिशियल जिसके लिए लखनऊ में एक ट्रायल रन होने जा रहा है।

दरअसल गर्मी और सूखे की समस्या से निजात दिलाने के मकसद से लखनऊ में पहली बार कृत्रिम बारिश होने जा रही है फिलहाल यह एक नए तरीके का ट्रायल रन ही होगा जिसे जल्द ही शहर में अमल में लाया जाएगा। यह खास इसलिए है, क्योंकि ट्रायल में होनेवाली इस बरसात के पीछे पूरी तरह इंडियन टेक्नोलॉजी है।

आईआईटी कानपुर के छह सीनियर विशेषज्ञों द्वारा इसे डेवलप किया गया है। सही मायने में  आई आईटी परिसर के बाहर पहली बार इसे अमल में लाया जा रहा है। अभी तक जिन जगहों पर कृत्रिम बारिश कराई गई है। उसे विदेशी कंपनियों के सहारे ही अमल में लाया गया है। ऐसे में कृत्रिम बारिश क्या है। इसकी क्या प्रक्रिया होती है, और क्यों इसकी जरूरत पड़ रही है।

Artificial Rain: स्वदेशी तकनीकी से होगी कृत्रिम बारिश, IIT कानपुर की टीम जल्द करेगी ट्रायल
Artificial Rain

प्राकृतिक बारिश कैसे होती है? 

जब नमी वाली गर्म हवा किसी ठंडे उच्च दबाव वाले वातावरण के संपर्क में आती है तो बारिश होने लगती है। गर्म हवा ठंडी हवा से ज्यादा पानी इकट्ठा करती है। और जब यह हवा अपने अंदर इकट्ठे पानी को ऊंचाई पर ले जाती है, तो ठंडे जलवायु में मिल जाती है। और अपने अंदर का जमा हुआ पानी भारी हो जाने पर उसे नीचे गिराने लगती है।जिसे बारिश कहते हैं। 

कृत्रिम बारिश (Artificial Rain)

देखिए अभी हमने जो समझा वो प्राकृतिक बारिश की प्रक्रिया थी, लेकिन कभी-कभी बारिश के मौसम में भी बारिश नहीं होती और सूखा पड़ जाता है। इसकी वजह से पूरी की पूरी फसलें तबाह हो जाती हैं। ऐसे में वैज्ञानिक कृत्रिम वर्षा यानी कि आर्टिफिशियल वर्षा का सहारा लेते हैं। इस प्रक्रिया में कुछ खास तकनीक की मदद से बारिश वाली वही प्राकृतिक प्रक्रिया कृत्रिम रूप से कराई जाती है। कृत्रिम बारिश कराना एक वैज्ञानिक प्रक्रिया होती है।

दुनिया के तमाम देशों में कृत्रिम बारिश कई तरीकों से होती रही है। पुरानी और सबसे ज्यादा प्रचलित तकनीक में विमान या रॉकेट के जरिए ऊपर पहुंचकर बादलों में सिल्वर आयोडाइड मिला दिया जाता है। सिल्वर आयोडाइड प्राकृतिक बर्फ की तरह ही होता है।

इसकी वजह से बादलों का पानी भारी हो जाता है। और बरसात हो जाती है इस प्रक्रिया को क्लाउड सीडिंग कहा जाता है। किसानों की आम बोल चाल की भाषा में इसे सरकारी वर्षा भी कहा जाता है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है, कि कृत्रिम बारिश के लिए बादल का होना जरूरी है बिना बादल के क्लाउड सीडिंग नहीं की जा सकती बादल बनने पर सिल्वर आयोडाइड का छिड़काव किया जाता है।

इसके कुछ एक तरीके और भी हैं, जैसे कि बादलों को इलेक्ट्रिकली चार्ज करके भी बारिश कराई जा सकती है। हालांकि यह बारिश कराने की नई तकनीक है। इसमें बाद लो को बिजली का झटका देकर बारिश कराई जाती है। इलेक्ट्रिक चार्ज होते ही बादलों में घर्षण होता है।

जिसके बाद बारिश शुरू हो जाती है, अब जानते हैं इसके फायदे और नुकसान क्या है गर्मी का बहुत अधिक बढ़ जाना सूख रहे फसलों और जीव जंतुओं को बचाने के लिए आर्थिक नुकसान को कम करने और वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कृत्रिम बारिश बहुत ही सहायक होती है।

लेकिन हमें ध्यान रखना होगा, कि प्रकृति ने बारिश करने की जो व्यवस्था अपने आप बनाई है वह अमूमन जमीन और पूरे वातावरण को सेहत मंद बनाती है, लेकिन स्थान की प्रवृत्ति हालात और जरूरत को समझे बिना आनन फानन में कृत्रिम बारिशकराना नुकसान देह भी हो सकता है।

इसके अलावा भले ही फसलों को बचाने के लिए कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन कृत्रिम बारिश में इस्तेमाल की जाने वाली सिल्वर एक जहरीली धातु है। जो वनस्पति और जीवों को धीरे-धीरे गहरा नुकसान पहुंचा सकती है।

एक और चीज हमें दिमाग में रखनी होगी कि अलग-अलग इलाकों में बादलों की बनावट अलग-अलग होती है।