ISRO: इसरो की सूचना के मुताबिक आज 14 जुलाई को दोपहर के 2:35 पर मिशन चंद्रयान तीन लॉन्च किया जा चुका है। चंद्रयान तीन अंतरिक्षयान को आंध्रप्...
ISRO: इसरो की सूचना के मुताबिक आज 14 जुलाई को दोपहर के 2:35 पर मिशन चंद्रयान तीन लॉन्च किया जा चुका है। चंद्रयान तीन अंतरिक्षयान को आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से LMV-3 रॉकेट के जरिए किया गया। लगे हाथ आपको बता दें की LMV-3 को जीएसएलवी मार्क तीन के नाम से जाना जाता है।
![]() |
ISRO Chandrayaan-3 Launch |
इस मिशन के जरिये इस बार भी चाँद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश की जाएगी। हालांकि अभी तक ये मुकाम दुनिया के केवल तीन देशों रूस, अमेरिका और चीन को हासिल हुआ है, लेकिन चंद्रयान दो और तीन के साथ जुड़ीसबसे बड़ी और फक्र की बात यह है कि मिशन चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र की रिसर्च के लिए एग्ज़ीक्यूटिव किया गया है। यह क्षेत्र इसलिए तो खास है ही, यहाँ सूरज की रौशनी नहीं पहुँच पाती हैं, लेकिन इसलिए भी खास है की किसी भी देश ने अब तक इस हिस्से से जुड़ा कोई मिशन एग्जिक्यूट नहीं किया है।
दरअसल, इसरो प्रमुख ए सोमनाथ ने बीते 28 जून को जानकारी देते हुए बताया था कि चंद्रयान तीन प्रक्षेपण के लिए तैयार है। इस अंतरिक्ष यान को लॉन्च वीइकल में जोड़ दिया गया है। और इसमें सभी जरूरी परीक्षण पूरा कर लिया है। इस बार चंद्रयान तीन को सक्सेस बेस्ट अप्रोच की जगह फेल्यर बेस्ट डिजाइन पर तैयार किया गया है।
जिसका सीधा मतलब है कि इसे बनाते वक्त उन सभी बातों पर फोकस किया गया है जिसके कारण मिशन फेल हो सकता है। इन सभी संभावित गड़बड़ी के लिए।इसलिए मिशन से ही काफी कुछ सीखा गया है। इसमें प्रमुख के मुताबिक पहली और सबसे बड़ी चुनौती जो पिछली बार थी कि विक्रम लैंडर की स्पीड कम करने के लिए जो पांच इंजन लगाए गए थे।
उन्होंने जरूरत से ज्यादा पैदा कर दिया, जिसके चलते जब लैंडर को तस्वीर लेने के लिए स्थिर होना चाहिए था, बात तभी अस्थिर हो गया था।इसके बाद क्राफ्ट तेजी से मुड़ने लगा और रास्ते से भटक गया। इसे समय रहते नियंत्रित नहीं किया जा सका और विक्रम लैंडर चाँद की सतह से टकराकर टूट गया। इस बार से निपटने के लिए ऐन्टी ग्रैविटी फर्स्ट टेक्नीक यूज़ की गई है।
पिछली बार की तुलना में इस बार फ्यूल ले जाने की क्षमता बढ़ा दी गई है ताकि अगर लैंडर को लैन्डिंग स्पॉट ढूंढने में मुश्किलात का सामना करना पड़ा।तो उसे वैकल्पिक लैंडिंग साइट तक आसानी से ले जाया जा सके। इसके अलावा एनर्जी के लिए बड़े सोलर सेल भी लगाए गए हैं। इस बार लैंडिंग साइट के लिए 500, 500 मीटर के छोटे से जगह के बदले 4.3 किलोमीटर 2.5 किलोमीटर स्पॉट को टारगेट किया गया है।
इसका यह मतलब हुआ कि इस बार अंदर कुछ ज्यादा जगह मिलेंगी और वह आसानी से सॉफ्ट लैन्डिंग कर पाएगा। यही नहीं इस बार के मिशन के केवल दो हिस्से यानी लैंडर और रोवर ही होंगे। जबकि ऑर्बिटर के काम के लिए पुराने और से ही कनेक्शन स्टैबलिश किया जाएगा। सोमनाथ दो के दौरान होने वाली गलती का जिक्र करते हुए बताया कि विक्रम लैंडर चाँद की सतह पर उतरने के लिए अनुकूल जगह की खोज कर रहा था।
लैन्डिंग के लिए अनुकूल जगह नहीं मिली थी जबकि लैंडर चाँद की सतह के बहुत करीब आ गया था। जिसके लिए इस बार सतह पर उतरते समय जो सेंसर एक्टिवेट होते हैं, उनके एक्टिवेट ड्यूरेशन और उनके ऐक्टिव होने की रेग्युलेशन पर भी काम किया गया है, जिसके चलते स्पीड को कम या ज्यादा करना पिछली बार की तुलना में ज्यादा आसान होगा।
सॉफ्टवेयर अपडेशन के साथ लैंडर के लेग को भी स्ट्रांग किया गया है। इस बार चाँद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के बाद रोवर चाँद पर मौजूद केमिकल और तत्वों की स्टडी करेगा। इस मिशन से ना केवल स्पेस टुरिज़म, स्पेस एक्सप्लोरेशन और न्यू अपॉर्चुनिटी को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि भविष्य में स्पेस कोलोनाइजेशन के लिए भी नए दरवाजे खुलेंगे।
कोई टिप्पणी नहीं