google.com, pub-8818714921397710, DIRECT, f08c47fec0942fa0 गीता जयंती: आध्यात्मिक ज्ञान का उत्सव, विशेष महत्व,विश्वभरी रूप,आयोजन | Gita Jayanti - Purvanchal Samachar - Purvanchal samachar - पूर्वांचल समाचार

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गीता जयंती: आध्यात्मिक ज्ञान का उत्सव, विशेष महत्व,विश्वभरी रूप,आयोजन | Gita Jayanti - Purvanchal Samachar

 गीता जयंती: आध्यात्मिक ज्ञान का उत्सव परिचय: गीता जयंती Gita Jayanti  , हिन्दू पंचांग में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जा...

 गीता जयंती: आध्यात्मिक ज्ञान का उत्सव

परिचय:

गीता जयंती Gita Jayanti , हिन्दू पंचांग में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाने वाली महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहार है। यह उत्कृष्ट पर्व भगवद गीता के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो हिन्दू धर्म के एक प्रमुख ग्रंथ महाभारत का हिस्सा है। गीता जयंती एक ऐसा समय है जब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को युद्धभूमि कुरुक्षेत्र पर आध्यात्मिक ज्ञान की अद्भुत बातचीत से आवृत्त किया। इस दिन को धार्मिक आस्था और भक्ति के साथ मनाया जाता है, और गीता के उपदेशों को समझने और अपने जीवन में अनुसरण करने का एक अद्वितीय अवसर प्रदान करता है।

गीता जयंती: आध्यात्मिक ज्ञान का उत्सव, विशेष महत्व,विश्वभरी रूप,आयोजन | Gita Jayanti - Purvanchal Samachar
Gita Jayanti

गीता का संक्षेप

भगवद गीता एक 700 श्लोकों का ग्रंथ है, जो महाभारत के भीष्म पर्व के अंतर्गत आता है। इसमें भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उसके धर्म और जीवन के मार्ग पर मार्गदर्शन किया है। गीता में युद्धभूमि पर हुआ एक रण के समय की घटनाओं का वर्णन है, जहां अर्जुन ने अपने धर्म संबंधी संदेहों को लेकर श्रीकृष्ण से सार्थक सुझाव मांगा था।


गीता जयंती का आयोजन

गीता जयंती का आयोजन भगवद गीता के उपदेशों को सार्वजनिक रूप से साझा करने के लिए किया जाता है। इस दिन मंदिरों में पूजा-अर्चना, गीता के श्लोकों का पाठ, और धार्मिक भाषणों का आयोजन किया जाता है। साधु-संत और धार्मिक गुरुओं द्वारा गीता के तात्कालिक अर्थ और उसके विशेष महत्व पर विस्तृत विचार-विमर्श किया जाता है। इसके अलावा, लोग समूह में एकता और भक्ति का साझा अनुभव करने के लिए सामूहिक भजन और कीर्तन का आयोजन करते हैं।


  • कर्मयोग (कर्म का योग): गीता में कहा गया है कि कर्म का त्याग नहीं, बल्कि उसे सही तरीके से करना चाहिए। कर्मयोग के अनुसार, कर्मों का निष्काम भाव रखना और उन्हें ईश्वर के लिए समर्पित करना चाहिए।
  • भक्तियोग (भक्ति का योग): गीता में भगवान की भक्ति का महत्व बताया गया है। भक्तियोग के अनुसार, भक्ति और प्रेम से भगवान के प्रति समर्पण करना चाहिए, जिससे व्यक्ति आत्मा के मुक्ति की प्राप्ति में सफल हो सकता है।
  • ज्ञानयोग (ज्ञान का योग): गीता में ज्ञानयोग के माध्यम से आत्मा का अद्वितीयता और ब्रह्म के साकार रूप में पहचाना जाता है। यह योग ज्ञान के माध्यम से मुक्ति की प्राप्ति की ओर मार्गदर्शन करता है।


गीता के उपदेशों का महत्व

गीता के उपदेश व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को स्पष्टता से बताते हैं। इसमें कर्मयोग, भक्तियोग, और ज्ञानयोग की उच्च सिद्धांतों का समावेश है, जो व्यक्ति को धार्मिक और आध्यात्मिक समृद्धि की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं। गीता में जीवन के उद्दीपन, कर्तव्यों का महत्व, और सत्य की खोज के लिए अनगिनत विचार शामिल हैं।


गीता जयंती का विशेष महत्व

गीता जयंती धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन लोग अपने जीवन में धार्मिकता, उद्दीपन, और सत्य की प्राथमिकता को समझने का प्रयास करते हैं। गीता के उपदेशों के माध्यम से व्यक्ति अपने अंतरात्मा के साथ संबंध स्थापित करता है और उच्चतम आदर्शों की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन हासिल करता है। इस दिन को अपने जीवन को धार्मिक और नैतिक सिद्धांतों के साथ संरूपित करने का अवसर माना जाता है।


गीता जयंती का विश्वभरी रूप

गीता जयंती भारत के अलावा विश्वभर में भी हिन्दू समुदायों में मनाई जाती है। विभिन्न भागों में रहने वाले हिन्दू समुदाय इस अद्वितीय दिन को अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक आस्था का हिस्सा मानते हैं और इसे भक्ति भाव से मनाते हैं। यह एक साझा प्लेटफ़ॉर्म प्रदान करता है जहां सभी वर्गों और वर्णों के लोग एक साथ आकर्षित होते हैं और गीता के संदेशों का साझा अनुभव करते हैं।



 भगवद गीता के 20 श्लोक 

1. य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।

    उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥

2. न जायते म्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।

   अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥

3. वेदाविनाशिनं नित्यं य एनमजमव्ययम्।

    कथं स पुरुषः पार्थ कं घातयति हन्ति कम्॥

4.वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।

   तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही॥

5.नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।

   न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥

6.अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च।

    नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः॥

7.अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते।

   तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि॥

8.य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।

  उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥

9.शरीरं यदावाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः।

   गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात्॥

10.उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुञ्जानं वा गुणान्वितम्।

    विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः॥

11.यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम्।

     यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्ति चेतसः॥

12.यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।

     तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च॥

13.श्रुतिविप्रतिपन्ना ते यदा स्थास्यति निश्चला।

     समाधावचला बुद्धिस्तदा योगमवाप्स्यसि॥

14.स्थितप्रज्ञस्य का भाषा समाधिस्थस्य केशव।

     स्थितधीः किं प्रभाषेत किमासीत व्रजेत किम्॥

15.प्रजहाति यदा कामान्सर्वान्पार्थ मनोगतान्।

     आत्मन्येवात्मना तुष्टः स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते॥

16.दुःखेष्वनुद्विग्नमनाः सुखेषु विगतस्पृहः।

    वीतरागभयक्रोधः स्थितधीर्मुनिरुच्यते॥

17.यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्।

     नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥

18.यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः।

     इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥

19.य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।

    उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते॥

20.न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः।

     यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते॥

समापन

गीता जयंती एक विशेष मौका है जब हम अपने जीवन को आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखने और उच्चतम मूल्यों की प्राप्ति के लिए संकल्पित होते हैं। इसे न केवल धार्मिक त्योहार के रूप में माना जाता है बल्कि एक आदर्श जीवन जीने के लिए भी एक महत्वपूर्ण अवसर के रूप में देखा जाता है। गीता का सन्देश है - "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" (भगवद गीता 2.47), अर्थात्, आपका कर्तव्य करने में ही है, फल की चिंता मत करो। इस सन्देश के साथ, गीता जयंती हमें सच्चे धर्म और आध्यात्मिक ज्ञान की दिशा में मार्गदर्शन करती है।


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