google.com, pub-8818714921397710, DIRECT, f08c47fec0942fa0 वट सावित्री व्रत कथा - वट सावित्री की कहानी - Vat Savitri Vrat Katha - Vat Savitri Ki Kahani - Purvanchal samachar - पूर्वांचल समाचार

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वट सावित्री व्रत कथा - वट सावित्री की कहानी - Vat Savitri Vrat Katha - Vat Savitri Ki Kahani

वट सावित्री व्रत कथा - वट सावित्री की कहानी  मित्रों आज हम वट सावित्री कथा  Vat Savitri Vrat Katha   के बारे में जानेंगे। यदि आप लोगो को यह ...

वट सावित्री व्रत कथा - वट सावित्री की कहानी 

मित्रों आज हम वट सावित्री कथा  Vat Savitri Vrat Katha  के बारे में जानेंगे। यदि आप लोगो को यह वट सावित्री की कहानी अच्छी लगे तो इसे अपने मित्रों के साथ शेयर अवश्य करें।

प्रत्येक वर्ष जेष्ठ मास की अमावस्या को उत्तर भारत की सुहागिन महिलाएं पूर्णिमा के दिन वट सावित्री का व्रत करती है। आइए सुनते हैं वट सावित्री की व्रत कथा भद्र देश के राजा थे उनका नाम अश्वपति था भद्र देश के राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी।

 

उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए पूरे मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन 100000 आहुति दी 18 वर्षों तक यह क्रम जारी रहा , इसके बाद उन पर कृपा हुई। और उनके यहां एक कन्या ने जन्म लिया उस कन्या का नाम सावित्री रखा गया

 अब सावित्री बड़ी हो गई और बड़ी होकर बहुत ही रूपवान हो गई उसके योग्य कोई नहीं मिल रहा था। वरना मिलने की वजह से सावित्री के पिता बहुत दुखी थे उन्होंने अपनी कन्या सावित्री से कहा कि तुम स्वयं ही अपने लिए योग्य वर तलाश कर लाओं।

वट सावित्री व्रत कथा - वट सावित्री की कहानी - Vat Savitri Vrat Katha - Vat Savitri Ki Kahani , image - purvanchal samachar
Vat Savitri Ki Kahani 


सावित्री अपने पिता की आज्ञा पाकर अपने लिए वर खोजने निकल गई। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वही एक देश के राजा धूमते हुए मिले क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। इसलिए वहीं रह रहे थे।

उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उसका मनन कर लिया, इसके बाद सावित्री घर लौट आई। सावित्री जब घर पहुंची अपने पिता के साथ नारद ऋषि को देखा पिता के पूछने पर उसने बताया कि उसने एक देश के राजकुमार सत्यवान को अपना पति स्वीकार कर लिया है।

जब नारद ऋषि को यह बात पता चली तो उन्होंने कहा कि हे राजन आप क्या कर रहे हैं। सत्यवान गुणवान है धर्मात्मा है और बलवान भी है पर उनकी आयु बहुत कम है वह अल्पायु है 1 वर्ष बाद ही उनकी मृत्यु हो जाएगी।

 ऋषिराज नारद की बात सुनकर अश्वपति राजा चिंता में डूब गए उन्होंने कहा पुत्री राजकुमार के रूप में जिसे तुम चुना है वह अल्पायु हैं।  क्या तुम उन्हें  अपना जीवनसाथी बनाना चाहिए।

इस पर सावित्री ने कहा पिताजी अच्छी पत्नी  अपने पति का एक ही बार वरण करती है ,राजा एक ही बार आज्ञा देता है ,और पंडित एक ही बार प्रतिज्ञा करते हैं ,और कन्यादान भी एक बार ही किया जाता है। सावित्री हठ करने लगी और बोली में सत्यवान से ही विवाह करूंगी।


 जब सावित्री नहीं मानी तो राजा अश्वपति ने सावित्री का विवाह सत्यवान से करा दिया सावित्री अपनी ससुराल पहुंचते ही अपने सास-ससुर की सेवा करने लगी। समय बीतने लगा नारद मुनि ने सावित्री सत्यवान की मृत्यु के दिन के बारे में बता दिया था। वह दिन जैसे-जैसे करीब आने लगा सावित्री अधीन होने लगी सावित्री ने 3 दिन पहले से ही उपवास रखने शुरू कर दिए।


 और नारद मुनि द्वारा अतिथियों का पूजन किया हर दिन की तरह सत्यवान उस दिन भी लकड़ी काटने चले गए साथ में सावित्री भी गई जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए पेड़ पर चढ़ गए तभी उसके सिर में तेज दर्द होने लगा दर्द से व्याकुल होने के कारण सत्यभान पेड़ से नीचे आ गए सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान कल आने लगी तभी वहां यमराज आते दिखाई दिए यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे।


 सावित्री भी उनके पीछे पीछे चल पड़ी यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यही विधि का विधान है नहीं मानी और यमराज के पीछे चल पड़े उन्होंने कहा कि मैं सत्यवान को ले जाने नहीं दूंगी सावित्री की निष्ठा और पते पर आया को देखकर यमराज सावित्री से कहा तुम धन्य हो तुम मुझसे कोई भी वरदान मांगो सावित्री ने कहा मेरे सास-ससुर अंधे हैं आप उन्हें आंखो की रोशनी प्रदान करें यमराज ने कहा ठीक है।

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 ऐसा ही होगा जाओ अब यहां से लौट जाओ लेकिन सावित्री अपने पति सत्यवान के पीछे पीछे चलती रही यमराज ने कहा देवी तुम वापस जाओ सावित्री ने कहा भगवान मुझे अपने पतिदेव के पीछे पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं है पति के पीछे चलना मेरा कर्तव्य है।


 सावित्री की यह बात सुनकर यमराज ने उन्हें एक और वर मांगने को कहा सावित्री बोली मेरे ससुर का राज्य चला गया है। आप पुनः वापस दिला दे यमराज ने सावित्री को यह वरदान भी दे दिया और कहा अब तुम यहां से लौट जाओ लेकिन सावित्री पीछे पीछे चलती रही।


 सावित्री को जलता देख यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा इस पर सावित्री ने  संतान और सौभाग्य का  वरदान भी सावित्री को दे दिया। सावित्री ने यमराज से कहा प्रभु में एक पतिव्रता पत्नी हूं आपने मुझे पुत्रवती होने का संतान का वरदान दिया है।


 आप मेरे पति को कैसे ले जा सकते हैं यह सुनकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े यमराज अंतर्ध्यान हो गए और सावित्री वट वृक्ष के पास आ गई जहां उसके पति का मृत शरीर पड़ा था सत्यवान और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े घर पहुंचे तो उन्होंने देखा उनके माता-पिता की आंखों की रोशनी लौट आई है।


 इसके बाद उनका राज्य भी वापस मिल गया इस प्रकार सावित्री सत्यवान हमेशा सुखी रहने लगे वट सावित्री व्रत कथा को सुनने से व्रत करने से वैवाहिक जीवन साथी की आयु पर आया किसी प्रकार का कोई भी विध्न अथवा संकट चल जाता है।

वट वृक्ष का पूजा करने का लाभ

सनातन धर्म में प्राचीन काल से ही वट वृक्ष का पूजा करने का चलन चलता आ रहा है।
सौभाग्यवती महिलॉए वट वृक्ष की पूजा अपने पति के लम्बी आयु के लिए करती है। वट वृक्ष में सदैव इश्वर का वास होता है। ऐसा शास्त्रों में वर्णित है। वट वृक्ष की पूजा करने से सुख-समृद्घि और अखंड सौभाग्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
वट वृक्ष की परिक्रमा का बहुत ही महत्व है। इस वृक्ष में लाल धागा बॉधने से मनोकामनाये पूर्ण होती है।
 वट वृक्ष ही नही इसके साथ अनेको वृक्षों है जिसे सनातन धर्म में बड़ा ही से पूजा जाता है।

conclusion: यदि मनुष्य चाह जाये तो वह कुछ भी प्राप्त कर सकता है।

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